इब्ने उमर (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) सुबह-शाम इन वाक्यों के द्वारा दुआ करना नहीं छोड़ते थेः “ऐ अल...
अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- हर सुबह एवं शाम को पूरे शौक़ के साथ इस दुआ को पढ़ते थे और इसे कभी नहीं छोड़ते थे। क्योंकि इसके अंदर कई महत्वप...
आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उन्हें यह दुआ सिखाईः “ऐ अल्लाह, मैं तुझसे तत्काल तथा देर से मिलन...
अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने आइशा -रज़ियल्लाहु अनहा- को यह दुआ सिखाई, जिसमें दुनिया एवं आख़िरत की भलाइयाँ माँगी गई हैं, उनकी बुराई से प...
अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस रज़ियल्लाहु अनहुमा का वर्णन है, उन्होंने कहा कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "ईमान तुम्हारे दिल में...
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बता रहे हैं कि ईमान एक मुसलमान व्यक्ति के दिल में उसी तरह पुराना और कमज़ोर हो जाता है, जिस तरह एक नया कपड़ा लंब...
मुआज़ बिन जबल रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनका हाथ पकड़ा और फ़रमाया : "ऐ मुआज़! अल्लाह की क़सम, मैं...
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुआज़ बिन जबल रज़ियल्लाहु अनहु का हाथ पकड़ा और उनसे फ़रमाया : अल्लाह की क़सम, मैं तुमसे मोहब्बत रखता हूँ और...
अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "बंदा अपने रब से सबसे अधिक निकट उस समय होता है, जब वह...
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बता रहे हैं कि बंदा अपने रब से सबसे ज़्यादा निकट उस समय होता है, जब वह सजदे में होता है। इसका कारण यह है कि सजद...
इब्ने उमर (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) सुबह-शाम इन वाक्यों के द्वारा दुआ करना नहीं छोड़ते थेः “ऐ अल्लाह, मैं तुझसे अपने दीन तथा दुनिया एवं घर वालों व माल के लिए आफियत (कल्याण) माँगता हूँ। ऐ अल्लाह, तू मेरे ऐब छुपा दे और मुझे भय से बचाए रख, और मेरे सामने से, मेरे पीछे से, मेरे दाएँ से, मेरे बाएँ से और मेरे ऊपर से मेरी हिफाज़त फ़रमा। और मैं नीचे से पकड़ लिए जाने से तेरी महानता के द्वारा पनाह चाहता हूँ।”
आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उन्हें यह दुआ सिखाईः “ऐ अल्लाह, मैं तुझसे तत्काल तथा देर से मिलने वाली हर प्रकार की भलाई माँगता हूँ, जो मैं जानता हूँ और जो नहीं जानता हूँ। और मैं तत्काल तथा देर से आने वाली हर प्रकार की बुराई से तेरी पनाह चाहता हूँ, जो मैं जानता हूँ और जो नहीं जानता हूँ। ऐ अल्लाह, मैं तुझसे हर उस भलाई का तलबगार हूँ, जो तेरे बंदे तथा नबी ने तुझसे तलब किया है, और मैं तुझसे हर उस बुराई से पनाह चाहता हूँ जिससे तेरे बंदे तथा नबी ने तुझसे पनाह चाही है। ऐ अल्लाह, मैं तुझसे जन्नत माँगता हूँ और उन तमाम बातों तथा कर्मों (की तौफ़ीक़) जो मुझे जन्नत के समीप कर दे और जहन्नम से तेरी पनाह चाहता हूँ और उन तमाम बातों और कर्मों (से दूरी) जो मुझे जहन्नम के समीप कर दे। और मैं तुझसे सवाल करता हूँ कि मेरे विषय में तूने जो भी फैसला किया है, उसको मेरे लिए बेहतर कर दे।”
अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस रज़ियल्लाहु अनहुमा का वर्णन है, उन्होंने कहा कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "ईमान तुम्हारे दिल में उसी तरह पुराना हो जाता है, जिस तरह पुराना कपड़ा जर्जर हो जाता है। इसलिए अल्लाह से दुआ करो कि तुम्हारे दिलों में ईमान को नया कर दे।"
मुआज़ बिन जबल रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनका हाथ पकड़ा और फ़रमाया : "ऐ मुआज़! अल्लाह की क़सम, मैं तुमसे मोहब्बत रखता हूँ।" आगे फ़रमाया : "ऐ मुआज़! मैं तुमको वसीयत करता हूँ कि हर नमाज़ के बाद यह दुआ पढ़ना हरगिज़ न छोड़ना : ऐ अल्लाह! अपने ज़िक्र करने, शुक्र करने और बेहतर अंदाज़ में अपनी इबादत करने में मेरी मदद फ़रमा।"
अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "बंदा अपने रब से सबसे अधिक निकट उस समय होता है, जब वह सजदे में होता है। अतः तुम उसमें ख़ूब दुआएँ किया करो।"
अनस रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है, वह कहते हैं : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सर्वाधिक जो दुआ करते थे वह यह है : “हे अल्लाह, हमारे रब, हमें दुनिया में भी अच्छी दशा प्रदान कर और आख़िरत में भी अच्छी दशा प्रदान कर और हमें जहन्नम की यातना से बचा ले।”
अबू दरदा रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "क्या मैं तुम्हें तुम्हारा सबसे उत्तम कार्य न बताऊँ, जो तुम्हारे रब के निकट सबसे ज़्यादा सराहनीय, तुम्हारे दरजे को सबसे ऊँचा करने वाला, तुम्हारे लिए सोना एवं चाँदी दान करने से बेहतर तथा इस बात से भी बेहतर है कि तुम अपने शत्रु से भिड़ जाओ और तुम उनकी गर्दन मार दो और वह तुम्हारी गर्दन मार दें?" सहाबा ने कहा : अवश्य ऐ अल्लाह के रसूल! तो फ़रमाया : "उच्च एवं महानअल्लाह का ज़िक्र करना।"
मुआज़ बिन जबल- रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि मैंने कहाः ऐ अल्लाह के रसूल! मुझे कोई ऐसा कार्य बताइए, जो मुझे जन्नत में दाखिल कर दे और जहन्नम से दूर कर दे। तो आपने कहाः तुमने एक बहुत बड़ी चीज़ के बारे में पूछा है, परन्तु जिसके लिए अल्लाह तआला आसान कर दे, उसके लिए यह निश्चय ही आसान हैः तुम अल्लाह की इबादत करो, किसी को उसका साझी न बनाओ, नमाज़ क़ायम करो, ज़कात दो, रमज़ान के रोज़े रखो और अल्लाह के घर काबे का हज करो। फिर फ़रमायाः क्या मैं तुम्हें भलाई के द्वार न बताऊँ? रोज़ा ढाल है, सदक़ा गुनाह की आग को बुझा देता है, जैसे पानी आग को बुझा देता है तथा आदमी का रात के अंधेरे में नमाज़ पढ़ना। फिर यह आयत पढ़ीः "تَتَجَافَى جُنُوبُهُمْ عَنِ الْمَضَاجِعِ يَدْعُونَ رَبَّهُمْ خَوْفًا وَطَمَعًا وَمِمَّا رَزَقْنَاهُمْ يُنْفِقُونَ فَلَا تَعْلَمُ نَفْسٌ مَا أُخْفِيَ لَهُمْ مِنْ قُرَّةِ أَعْيُنٍ جَزَاءً بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ" (अर्थात, उनके पहलू बिस्तरों से अलग रहते हैं। वह अपने रब को भय एवं लालच के साथ पुकारते हैं और हमारी दी हुई चीज़ों में से खर्च करते रहते हैं। कोई प्राणी नहीं जानता कि हमने उनके लिए क्या कुछ आँखों की ठंडक छिपा रखी है, उनके उन कर्मों के प्रतिफल के तौर पर, जो वे किया करते थे।)
फिर फ़रमायाः क्या मैं तुम्हें इस मामले का सिरा, उसका स्तंभ और उसकी सबसे ऊँची चोटी के बारे में न बता दूँ? मैंने कहाः अवश्य, ऐ अल्लाह के रसूल! फ़रमायाः इस मामले का सिरा इस्लाम है, उसका स्तंभ नमाज़ है और उसकी सबसे ऊँची चोटी जिहाद है।
फिर फ़रमायाः क्या मैं तुम्हें इन तमाम वस्तुओं का सार न बता दूँ? मैंने कहाः अवश्य, ऐ अल्लाह के रसूल! आपने अपनी ज़बान को पकड़कर कहाः इसे संभालकर रखो।
मैंने कहाः ऐ अल्लाह के नबी! क्या हम जो कुछ बोलते हैं, उसपर भी हमारी पकड़ होगी?
तो फ़रमायाः तुम्हारी माँ तुम्हें गुम पाए, भला लोगों को जहन्नम की आग में उनके चेहरों के बल (या कहा कि उनके नथनों के बल) ज़बान की तेज़ी के सिवा और कौन-सी चीज़ डालेगी?
आइशा रज़ियल्लाहु अनहा का वर्णन है : अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब प्रत्येक रात बिस्तर में जाते, तो अपनी दोनों हथेलियों को जमा करते, फिर उनमें फूँकते और उनमें "क़ुल हु-वल्लाहु अहद", "क़ुल अऊज़ु बि-रब्बिल फ़लक़" और "क़ुल अऊज़ु बि-रब्बिन नास" तीनों सूरतें पढ़ते और दोनों हथेलियों को जहाँ तक संभव होता अपने शरीर पर फेरते। हाथ फेरने का आरंभ अपने सर, चेहरे और शरीर के अगले भाग से करते। ऐसा तीन बार करते।
शद्दाद बिन औस रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : “सय्यदुल इस्तिग़फार (सर्वश्रेष्ठ क्षमायाचना) यह है कि बंदा इस प्रकार कहे : ऐ अल्लाह, तू ही मेरा रब है। तेरे सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है। तू ने ही मेरी रचना की है और मैं तेरा बंदा हूँ। मैं तुझसे की हुई प्रतिज्ञा एवं वादे को हर संभव पूरा करने का प्रयत्न करूँगा। मैं अपने कर्म की बुराई से तेरी शरण चाहता हूँ। मैं तेरी ओर से दी जाने वाली नेमतों (अनुग्रहों) का तथा अपनी ओर से किए जाने वाले पापों का इक़रार करता हूँ। तू मुझे माफ कर दे, क्योंकि तेरे सिवा पापों को क्षमा करने वाला कोई नहीं।” आपने कहा : "जिसने इसे विश्वास के साथ दिन में कहा और उसी दिन शाम से पहले मर गया, वह जन्नतवासी है। और जिसने इसे विश्वास के साथ रात में कहा और सुबह होने से पहले मर गया, वह जन्नतवासी है।"
अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णित है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) जब सुबह करते, तो यह दुआ पढ़तेः "ऐ अल्लाह, हमने तेरे (अनुग्रह के) साथ सुबह की और तेरे ही (अनुग्रह के) साथ शाम की और हम तेरे ही अनुग्रह से जीते हैं और तेरे ही नाम पर मरते हैं, और हमें तेरी ही ओर उठकर जाना है।" और जब शाम करते, तो यह दुआ पढ़तेः “ऐ अल्लाह हमने तेरे (अनुग्रह के) साथ शाम की, तथा तेरे ही नाम से जीते हैं और तेरे ही नाम से मरते हैं, और तेरी ओर ही पलटकर जाना है।”
उसमान बिन अफ़्फ़ान अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से रिवायत करते हैं कि जिस बंदे ने प्रत्येक दिन सुब्ह तथा प्रत्येक रात शाम को तीन बार यह दुआ पढ़ी, उसे कोई चीज़ नुक़सान नहीं पहुँचा सकतीः (बिस्मिल्लाहिल लज़ी मअ़स्मिही शैउन फिलअर्ज़ि वला फिस्समाई व हुवस समीउल अलीम) अर्थात, मैं उस अल्लाह के नाम की सुरक्षा में आता हूँ, जिसके नाम के ज़िक्र के बाद कोई वस्तु नुक़सान नहीं पहुँचा सकती, वह अत्यधिक सुनने वाला तथा जानने वाला है।