ऐ अल्लाह के रसूल! मुझे कोई ऐसा कार्य बताइए, जो मुझे जन्नत में दाखिल कर दे और जहन्नम से दूर कर दे। तो आपने कहाः तुमने एक बहुत बड़ी चीज़ के बारे में पूछा है, परन्तु जिसके लिए अल्लाह तआला आसान कर दे, उसके लिए यह निश्चय ही आसान है।...
मुआज़ बिन जबल- रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि मैंने कहाः ऐ अल्लाह के रसूल! मुझे कोई ऐसा कार्य बताइए, जो मुझे जन्नत में दाखिल कर दे और जहन्नम से दूर कर दे। तो आपने कहाः तुमने एक बहुत बड़ी चीज़ के बारे में पूछा है, परन्तु जिसके लिए अल्लाह तआला आसान कर दे, उसके लिए यह निश्चय ही आसान हैः तुम अल्लाह की इबादत करो, किसी को उसका साझी न बनाओ, नमाज़ क़ायम करो, ज़कात दो, रमज़ान के रोज़े रखो और अल्लाह के घर काबे का हज करो। फिर फ़रमायाः क्या मैं तुम्हें भलाई के द्वार न बताऊँ? रोज़ा ढाल है, सदक़ा गुनाह की आग को बुझा देता है, जैसे पानी आग को बुझा देता है तथा आदमी का रात के अंधेरे में नमाज़ पढ़ना। फिर यह आयत पढ़ीः "تَتَجَافَى جُنُوبُهُمْ عَنِ الْمَضَاجِعِ يَدْعُونَ رَبَّهُمْ خَوْفًا وَطَمَعًا وَمِمَّا رَزَقْنَاهُمْ يُنْفِقُونَ فَلَا تَعْلَمُ نَفْسٌ مَا أُخْفِيَ لَهُمْ مِنْ قُرَّةِ أَعْيُنٍ جَزَاءً بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ" (अर्थात, उनके पहलू बिस्तरों से अलग रहते हैं। वह अपने रब को भय एवं लालच के साथ पुकारते हैं और हमारी दी हुई चीज़ों में से खर्च करते रहते हैं। कोई प्राणी नहीं जानता कि हमने उनके लिए क्या कुछ आँखों की ठंडक छिपा रखी है, उनके उन कर्मों के प्रतिफल के तौर पर, जो वे किया करते थे।)
फिर फ़रमायाः क्या मैं तुम्हें इस मामले का सिरा, उसका स्तंभ और उसकी सबसे ऊँची चोटी के बारे में न बता दूँ? मैंने कहाः अवश्य, ऐ अल्लाह के रसूल! फ़रमायाः इस मामले का सिरा इस्लाम है, उसका स्तंभ नमाज़ है और उसकी सबसे ऊँची चोटी जिहाद है।
फिर फ़रमायाः क्या मैं तुम्हें इन तमाम वस्तुओं का सार न बता दूँ? मैंने कहाः अवश्य, ऐ अल्लाह के रसूल! आपने अपनी ज़बान को पकड़कर कहाः इसे संभालकर रखो।
मैंने कहाः ऐ अल्लाह के नबी! क्या हम जो कुछ बोलते हैं, उसपर भी हमारी पकड़ होगी?
तो फ़रमायाः तुम्हारी माँ तुम्हें गुम पाए, भला लोगों को जहन्नम की आग में उनके चेहरों के बल (या कहा कि उनके नथनों के बल) ज़बान की तेज़ी के सिवा और कौन-सी चीज़ डालेगी?
इसे इब्ने माजा ने रिवायत किया है । - इसे तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है। - इसे अह़मद ने रिवायत किया है।
व्याख्या
यह हदीस हमें बताती है कि इनसान को जो अमल जहन्नम से मुक्ति और जन्नत में प्रवेश दिलाती है, वह है, अन्य सभी असत्य पूज्यों को छोड़ केवल एक अल्लाह की इबादत करना और साथ ही नमाज़, ज़कात, रोज़ा एवं हज आदि का पालन करना, जिन्हें अल्लाह ने बंदों पर फ़र्ज़ किया है। आगे बताया कि तमाम तरह की भलाइयों को एकत्र करने वाली चीज़ें हैं नफ़ल सदक़ा, रोज़ा और रात के अंधेरे में पढ़ी जाने वाली तहज्जुद की नमाज़। फिर बताया कि इस मामले का सिरा इस्लाम है, इसका स्तंभ नमाज़ है, इसकी चोटी अल्लाह के पताका को ऊँचा करने के लिए जिहाद करना है और इन तमाम चीज़ों का सार यह है कि इनसान ऐसी बात कहने से बचे, जिसे कहने पर यह सारे कर्म व्यर्थ हो जाते हैं।
अतः प्रत्येक मुसलमान को, जो अच्छे कर्म करता हो, इस बात से सावधान रहना चाहिए कि कोई ऐसी बात कह जाए, जिससे उसके सारे अच्छे कर्म व्यर्थ हो जाएँ और वह जहन्नम जाने वालों में शामिल हो जाए।
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