सोने को सोने के बदले बेचना सूद है, लेकिन यदि नकद तथा हाथों हाथ हो, तो नहीं। चाँदी को चाँदी के बदले बेचना सूद है, लेकिन यदि नक़द तथा हाथों हाथ हो, तो नहीं। गेहूँ को गेहूँ के बदले बेचना सूद है, लेकिन यदि नक़द तथा होथों हाथ हो, तो नहीं । जौ को...
उमर बिन खत्ताब -रज़ियल्लाहु अन्हु- से वर्णित है कि नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया : "सोने को सोने के बदले बेचना सूद है, लेकिन यदि नकद तथा हाथों हाथ हो, तो नहीं। चाँदी को चाँदी के बदले बेचना सूद है, लेकिन यदि नक़द तथा हाथों हाथ हो, तो नहीं। गेहूँ को गेहूँ के बदले बेचना सूद है, लेकिन यदि नक़द तथा होथों हाथ हो, तो नहीं । जौ को जौ से बेचना सूद है, लेकिन यदि नक़द तथा हाथों हाथ हो, तो नहीं।"
इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।
व्याख्या
इस हदीस में नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उक्त वस्तुओं के बीच, जिनमें सूद होता है, क्रय-बिक्रय का सही तरीक़ा बताया है। जो व्यक्ति किसी वस्तु को, जिसमें सूद होता है, उसी जिंस की वस्तु से बेचना चाहे, जैसे सोने को सोने के बदले और गेहूँ को गेहूँ के बदले, तो बराबर-बराबर और नक़द बेचना होगा, यद्यपि दोनों की गुणवत्ता में अंतर हो। इसी तरह यदि कोई सोने को चाँदी के बदले बेचना चाहे, तो मामला तय होने की मजलिस ही में दोनों तरफ़ से क़ब्ज़ा हो जाना चाहिए। वरना, यह ख़रीद-बिक्री जायज़ नहीं होगी। क्योंकि इसे 'मुसारफ़ा' कहा जाता है, जिसके लिए उसी मजलिस में क़ब्ज़ा आवश्यक है। लेकिन दोनों का बराबर होना ज़रूरी नहीं है, क्योंकि दोनों के सूदी होने का सबब अलग-अलग है। उदाहरणस्वरूप यदि कोई जौ के बदले गेहूँ बेचे, तो मामला तय होने की मजलिस ही में लेनदेन हो जाना चाहिए, क्योंकि दोनों ऐसी वस्तुएँ हैं, जिनमें सूद होता है।
सारांशः यदि जिंस एक हो, तो मामला तय होने की मजलिस ही में क़ब्ज़ा और बराबरी दोनों ज़रूरी हैं, यद्यपि गुणवत्ता में अंतर हो। और अगर जिंस एक हो तथा सबब अलग-अलग, तो क़ब्ज़ा ज़रूरी है, बराबरी नहीं। जैसे सोने को नक़द राशि के बदले बेचना। लेकिन, अगर सबब अलग-अलग हो या माल सूद वाला न हो, तो कुछ भी शर्त नहीं है। इसमें उधार भी जायज़ है और कमी-बेशी भी।
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