- इस ज़िक्र को हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद पाबंदी के साथ पढ़ना मुसतहब है।
- एक मुसलमान अपने दीन पर अभिमान करता है और उसके प्रतीकों का खुलकर पालन करता है, चाहे काफ़िरों को बुरा ही क्यों न लगे।
- हदीस में जब "دُبر الصلاة" (नमाज़ के बाद) के शब्द आएँ और हदीस में जिस चीज़ का उल्लेख हुआ है, वह ज़िक्र हो, तो असलन उससे मुराद सलाम के बाद होगा, इसके बजाय अगर दुआ हो, तो मुराद सलाम से पहले होगा।