- मस्जिद में उपस्थित होकर जमात के साथ नमाज़ न पढ़ने की भयानकता।
- मुनाफ़िक़ इबादत केवल दिखावे के तौर पर करते हैं। यही कारण है कि वह मस्जिद उसी समय जाते हैं, जब लोग देख रहे हों।
- इशा तथा फ़ज्र की नमाज़ जमात के साथ पढ़ने का बड़ा सवाब, और इस बात का उल्लेख कि यह दोनों नमाज़ें इस लायक़ हैं कि इन्सान इनमें अवश्य आए चाहे उसे घुटनों के बल चलकर आना पड़े।
- इशा तथा फ़ज्र की नमाज़ की पाबंदी मुनाफिकत से सुरक्षित होने की निशानी है और इन दो नमाज़ों में शामिल न होना मुनाफ़िक़ों की विशेषता है।