- सूरा फ़ातिहा पढ़ने की शक्ति हो, तो कोई दूसरी चीज़ उसका स्थान नहीं ले सकती।
- जान-बूझ कर, अज्ञानता के कारण या भूलवश किसी रकात में सूरा फ़ातिहा न पढ़ी जाए, तो वह रकात बातिल हो जाती है। क्योंकि सूरा फ़ातिहा पढ़ना नमाज़ का एक स्तंभ है और नमाज़ के स्तंभ किसी भी स्थिति में छोड़े नहीं जा सकते।
- मुक़तदी इमाम को रुकू की अवस्था में पाए, तो उसे सूरा फ़ातिहा पढ़ने की ज़रूरत नहीं रहती।