- यह हदीस इस्लाम का एक सिद्धांत तथा फ़िक़्ह का एक उसूल प्रस्तुत करती है। उसूल यह है कि यक़ीन शक के आधार पर नष्ट नहीं होता। असल यह है कि जो जिस अवस्था में था, वह उसी अवस्था में रहेगा, जब तक उसके विपरीत साबित न हो जाए।
- शक का पवित्रता (तहारत) पर कोई प्रभावन नहीं पड़ता और नमाज़ पढ़ रहा व्यक्ति अपनी पवित्रता पर बाक़ी रहेगा, जब तक इस बात का यक़ीन न हो जाए कि वज़ू टूट गया है।