- अल्लाह का विशाल अनुग्रह कि इन्सान जो भी ग़लती करे और जो भी काम करे, जब अल्लाह की ओर लौटता है और उसके सामने तौबा करता है, तो अल्लाह उसकी तौबा को ग्रहण करता है।
- अल्लाह पर ईमान रखने वाला व्यक्ति उसकी क्षमा की आशा रखता है और उसके दंड से डरता है, इसलिए वह गुनाह करते जाने की बजाय जल्दी से तौबा कर लेता है।
- सही तौबा की शर्तें : जो गुनाह कर रहा था उसे छोड़ देना, उसपर शर्मिंदा होना और दोबारा उसे न करने का पक्का इरादा करना। अगर तौबा का संबंध बंदे के किसी अधिकार, मसलन माल, इज़्ज़त-आबरू और जान से हो, तो एक चौथी शर्त बढ़ जाती है। वह शर्त है, हक़ वाले को उसका हक़ दे देना या उससे माफ़ी करा लेना।
- अल्लाह का ज्ञान रखने का महत्व, जो बंदे को दीनी मसायल का जानकार बनाता है और जिसके नतीजे में बंदा हर बार ग़लती करने के बाद तौबा कर लेता है। वह न तो अल्लाह की दया से निराश होता है और न गुनाह में आगे बढ़ता जाता है।