- किसी सूचना की पुष्टि के लिए, चाहे वह भविष्य काल से जुड़ी हुई ही क्यों न हो, क़सम के मुतालबे के बिना भी क़सम खाना जायज़ है।
- क़सम खाने के बाद "अगर अल्लाह ने चाहा" कहकर कुछ चीज़ों को क़सम के दायरे से बाहर रखना जायज़ है। कुछ चीज़ों को अलग करने का यह काम अगर क़सम के साथ ही कर दिया जाए, तो वह चीज़ें क़सम के दायरे के अंदर नहीं आएँगी।
- इस बात की प्रेरणा कि जब कोई व्यक्ति किसी चीज़ की क़सम खा ले और उसके बाद दूसरी चीज़ को उससे उत्तम देखे, अपनी क़सम तोड़ दे और उसका कफ़्फ़ारा अदा करे।