- इन्सान का कर्तव्य है कि अपने भाई के लिए वही पसंद करे, जो अपने लिए पसंद करता हो। क्योंकि जो अपने लिए पसंद हो, उसे अपने भाई के लिए पसंद न करने वाले के अंदर ईमान न होने का एलाना यही बताता है।
- दीनी भाइचारा नसबी भाइचारे से ऊपर है, इसलिए इसका अधिकार भी अधिक अनिवार्य है।
- ऐसे सभी कथन एवं कार्य, जैसे धोखा, ग़ीबत, हसद और मुसलमानों की जान, माल या इज़्ज़त-आबरू पर आक्रमण आदि हराम हैं, जो इस भाई-चारे के विपरीत हों।
- किसी कार्य पर उभारने वाले शब्दों का प्रयोग। क्योंकि आपने "अपने भाई" शब्द का प्रयोग किया है।
- किर्मानी कहते हैं : ईमान का तक़ाज़ा यह भी है कि इन्सान अपने भाई के लिए वही नापसंद करे, जो अपने लिए नापसंद करता हो। लेकिन इसका ज़िक्र आपने नहीं किया। क्योंकि किसी चीज़ से मुहब्बत से उसके विपरीत से नफ़रत लाज़िम आती है। इसलिए इसे अलग से बताने की ज़रूरत नहीं पड़ी।