जब तुम खाओ, तो उसे खिलाओ, जब तुम पहनो (या कमाओ) तो उसे पहनाओ, चेहरे पर न मारो, बुरा-भला न कहो और घर के सिवा कहीं और अलग न रहो।...
हकीम बिन मुआविया क़ुशैरी अपने पिता से रिवायत करते हैं कि उन्होंने कहाः ऐ अल्लाह के रसूल, हममें से किसी की पत्नी का उसपर क्या हक़ है? आपने कहाः "यह कि जब तुम खाओ, तो उसे खिलाओ, जब तुम पहनो (या कमाओ) तो उसे पहनाओ, चेहरे पर न मारो, बुरा-भला न कहो और घर के सिवा कहीं और अलग न रहो।"
इसे इब्ने माजा ने रिवायत किया है । - इसे अबू दाऊद ने रिवायत किया है। - इसे अह़मद ने रिवायत किया है।
व्याख्या
मुआविया अल-क़ुशैरी -रज़ियल्लाहु अनहु- ने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से पत्नि के अनिवार्य अधिकारों के बारे में पूछा, तो आपने उनसे कहा कि अपनी क्षमता अनुसार उसके लिए खाना एवं कपड़ा उपलब्ध कराना अनिवार्य है। फिर पत्नी के चेहरे पर मारने, गाली गलौज करने और यदि उसे सज़ा के तौर पर बिस्तर से अलग रखना चाहे, तो घर के अतिरिक्त कहीं और अलग रखने, उसे घर पर छोड़ कर खुद कहीं और चले जाने तथा उसे किसी दूसरे घर में भेज देने से मना किया है।
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