- शरीयत की दृष्टि में रिश्ते-नातों को निभाने का अमल उसी समय मान्य है, जब रिश्ता तोड़ने वाले के साथ रिश्ता जोड़ा जाए, अत्याचार करने वाले को क्षमा किया जाए और वंचित रखने वाले को दिया जाए। वो रिश्ता निभाना नहीं, जो बदले के तौर पर हो।
- रिश्ता निभाना धन, दुआ, भलाई के आदेश और बुराई से मनाही आदि द्वारा जहाँ तक संभव हो भला करने और बुराई से बचाने के नाम है।