व्याख्या
अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने इस हदीस-ए-क़ुदसी में बताया है कि बंदों के सारे सत्कर्म, कथन हों कि कर्म, व्यक्त हों कि गुप्त, अल्लाह के अधिकार से संबंधित हों कि बंदों के अधिकार से, उन्हें बढ़ाकर सात सौ गुना तक कर दिया जाता है।
इसे अल्लाह के असीम अनुग्रह और मोमिन बंदों पर उसके विशाल उपकार के अतिरिक्त और क्या कहेंगे कि जब गुनाहों तथा अवज्ञाकारियों की बात आती है, तो वह एक गुनाह को एक ही शुमार करता है। इतना ही नहीं, बल्कि यदि चाहे तो माफ़ भी कर सकता है।
लेकिन इस हदीस में रोज़े के प्रतिफल को इससे अलग रखा गया है। क्योंकि रोज़ेदार को उसका प्रतिफल बिना हिसाब और बिना गणना के बहुत ज़्यादा दिया जाता है। क्योंकि रोज़े के अंदर सब्र के तीनों रूप पाए जाते हैं। अल्लाह के आज्ञापालन पर सब्र यानी उसपर दृढ़ता से जमे रहना, अल्लाह की अवज्ञा से सब्र यानी उससे दूर रहना और अल्लाह के निर्णय पर सब्र यानी उसपर धैर्य रखना।
अगर अल्लाह के आज्ञापालन पर सब्र या दृढ़ता से जमे रहने की बात करें, तो इनसान चूँकि अपने नफ़्स को रोज़े की कठिनाई को सहने पर आमादा करता है, जबकि उसमें होने वाली परेशानियों के कारण कभी-कभी नफ़्स उसे नापसंद भी करता है। लेकिन इसके बावजूद वह अपने नफ़्स को खाना, पीना और संभोग आदि से दूर रहने पर तैयार कर लेता है। यदि कोई रोज़े की कठिनाई के अतिरिक्त रोज़े के फ़र्ज़ होने को नापसंद करे तो उसके सारे नेक काम बरबाद और व्यर्थ होजाएंगे। यही कारण है कि सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह ने हदीस-ए-क़ुदसी में कहा है कि वह मेरे लिए खाने, पीने और संभोग से परहेज़ करता है।
सब्र का दूसरा रूप है अल्लाह की अवज्ञा से दूर रहना और यह बात रोज़ेदार के अंदर भी पाई जाती है। क्योंकि वह अल्लाह की अवज्ञा से दूर रहते हुए निरर्थक, गंदी एवं झूठी बातों आदि अवैध चीज़ों से दूर रहता है।
सब्र का तीसरा रूप है अल्लाह के निर्णयों पर सब्र। हम देखते हैं कि रोज़ेदार को भूख, प्यास एवं शारीरिक थकान का एहसास होता है, विशेष रूप से गर्मी के दिनों में तो और होता है, लेकिन अल्लाह की प्रसन्नता की प्राप्ति के लिए इन सारी बातों पर सब्र कर लेता है।
इस तरह चूँकि रोज़े के अंदर सब्र अपने तीनों रूपों में विद्यमान होता है, इसलिए उसका प्रतिफल भी बिना गणना के मिलता है। अल्लाह तआला का फ़रमान है : "निश्चय ही सब्र करने वालों को उनका प्रतिफल बिना गणना के दिया जाता है।"
यह हदीस इस बात को प्रमाणित करती है कि संपूर्ण रोज़ा वह है, जिसमें बंदा दो प्रकार की चीज़ों को छोड़ देता है :
प्रत्यक्ष रूप से रोज़ा तोड़ देने वाली चीजें। जैसे खाना, पीना, संभोग तथा इनसे जुड़ी हुई चीज़ें।
व्यवहारिक रूप से रोज़े के विरुद्ध चीज़ें। जैसे गंदी, झगड़ा एवं फ़ितना पैदा करने वाली और झूठी बातें तथा द्वेषपूर्ण झगड़े। यही कारण है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया कि रोज़ेदार गंदी बात न करे और झगड़ा तथा फ़ितना पैदा करने वाले बोल न बोले। जिसने दोनों चीज़ों को छोड़ दिया यानी रोज़ा तोड़ने वाली चीज़ों से दूर रहा और वर्जित चीज़ों से दामन बचाए रखा, उसे पूरा रोज़ा रखने वाले का प्रतिफल मिलेगा और जिसने ऐसा नहीं किया, उसके रोज़े का सवाब इन अवज्ञाओं के अनुपात में घटा दिया जाएगा। उसके बाद आपने रोज़ेदार को यह निर्देश दिया कि यदि उससे कोई झगड़ा करने या बदज़बानी करने पर तुला हुआ हो, तो वह कह दे कि मैं रोज़े से हूँ।
यानी वह उससे मुँह लगाने के बजाय बस इतना कह दे कि मैं रोज़े से हूँ, ताकि बदज़बानी करने वाला हद से आगे न बढ़े। मसलन वह कह दे कि मैं तुम्हारी बातों का उत्तर तो दे सकता हूँ, लेकिन मैं रोज़े से हूँ, अपने रोज़े का सम्मान करता हूँ, उसे संपूर्णता प्रदान करना चाहता हूँ और मुझे अल्लाह एवं उसके रसूल के आदेश का ख़याल है।
आपके शब्द "रोज़ा ढाल है" का अर्थ है, रोज़ा एक प्रकार का सुरक्षा कवच है, जिसके ज़रिए बंदा दुनिया में गुनाहों से बचता है, भलाई का अभ्यास करता है और अल्लाह की यातना से सुरक्षित रहता है।
"रोज़ेदार को दो खुशियाँ प्राप्त होती हैं; एक ख़ुशी इफ़तार के समय होती है और एक खुशी उस समय होगी जब वह अपने पालनहार से मिलेगा।"
यह दो प्रतिफल हैं, एक इस दुनिया में प्राप्त होने वाला और एक आख़िरत में प्राप्त होने वाला।
दुनिया में प्राप्त होने वाली खुशी तो दिखाई देती है। जब रोज़ेदार इफ़तार करता है तो इस बात पर खुश होता है कि अल्लाह ने उसे रोज़ा पूरा करने का सुयोग प्रदान किया और जिन मन पसंद चीज़ों से उसे दिन में रोका गया था, उनके प्रयोग की अनुमति मिल गई। जबकि आख़िरत की खुशी उस समय प्राप्त होगी, जब बंदा अपने रब से इस अवस्था में मिलेगा कि वह उससे प्रसन्न और राज़ी होगा। दरअसल दुनिया में प्राप्त होने वाली यह खुशी आख़िरत में प्राप्त होने वाली खुशी की एक झलक है। यह दोनों खुशियाँ अल्लाह रोज़ेदार की झोली में डाल देता है।
फिर आपने उसकी क़सम खाकर जिसके हाथ में आपके प्राण हैं, बताया कि रोज़ेदार के मुँह का गंध अल्लाह के निकट कस्तूरी की सुगंध से भी अधिक पाकीज़ा है। सहीह मुस्लिम की रिवायत के शब्द हैं : "रोज़ेदार के मुँह की गंध क़यामत के दिन अल्लाह के निकट कस्तूरी की सुगंध से भी अधिक पाकीज़ा है।"
इस तरह अल्लाह यह प्रतिफल प्रदान करेगा कि दुनिया में उसके मुँह से जो दुर्गंध निकलती थी, उसे क़यामत के दिन कस्तूरी से भी अधिक सुगंधित बना देगा।